खरा मिनख हा दुर्गेशजी


- डॉ. मदन सैनी, बीकानेर

दुर्गेशजी सूं म्हारो मेळ-मिलाप घणो जूनो है। म्हैं जद दसवीं मांय भणाई करतो, उण टेम 'बातघर` मांय म्हारी कहाण्यां-कवितावां छपती। दुर्गेशजी री ई छपती। बै 'युगपक्ष` अर 'वर्तमान` मांय ई छपता, म्हैं भी छप्यो। उण टेम बै दुर्गादत्‍त दुर्गेश रै नांव सूं लिख्या करता। म्हनैं याद है कै म्हारी कहाणी माथै पैलो पाठक-पत्र दुर्गेशजी रो इज आयो। बै लिख्यो कै इचरच री बात है, आप कॉमर्स रा विद्यार्थी हो, फेर ई आपरी भाषा निर्दोष है, आपसूं म्हानैं घणी उम्मीदां है। आप आपरै लेखण मांय खरोपण राख्या अर ज्यादा सूं ज्यादा भोगेड़ो जथारथ इज प्रगट करता रैया।
बाद मांय तो दुर्गेशजी म्हारी कैयी रचनावां री बडाई करी। म्हैं बांनै भोत कम कागद लिख्या, पण बांरै लेखन मांय आळस कोनी हो। बरस छियत्‍तर-सतत्‍तर मांय म्हैं सेठ बुद्धमल दूगड़ राजकीय महाविद्यालय, सरदारशहर मांय बी.कॉम. रै पैलै बरस री भणाई कर रैयो हो। 'बाल भारती` मांय दुर्गेशजी री 'बटुआ` कहाणी छपी ही। संजोग सूं म्हैं म्हारै नानेरै चूरू गयो अर ममेरै भाई सूं दुर्गेशजी रो जिकर करयो। मेमरो भाई नारायण दहिया कैयो कै दुरगो भायो तो नेड़ो इज रैवै, चालो मिला दयूं। म्हैं उमायो-उमायो नारायण साथै रामजस रै कुवै कनै एक बगीची रै कमरै सामीं खड़यो हुयग्यो। नारायण हेलो करघे, ''दुरगा भाईजी!`` हेलै रै समचै ई हाथ री आंगळयां मांय थाम्योड़ी बीड़ी फेंकता दुर्गेशजी कमरै सूं निकळया। म्हारै कानी आपरी निजरां सूं देख्यो। म्हैं बोल्यो, ''मदन सैनी।`` म्हारो नांव सुणतां-ई दुर्गेशजी आगै बधता थकां म्हनैं गळै लगा लियो।
बां रो कमरो किरायै रो हो। उण मांय टेबल, कुर्सी अर लैंप सजायोड़ा हा। कमरै मांय पत्रिकावां भी करीनै सूं सजायोड़ी ही। बै अखबार अर पत्रिकावां मांय छपी आपरी रचनावां दिखांवता रैया अर साहित्य री विधावां माथै चरचा करता रैया। कमरै मांय बीड़यां रो धूंवो म्हनैं ठीक नीं लाग्यो। पछै म्हैं बीड़ी रै नशै नै लेयनै 'बीड़यां` नांव री कहाणी लिखी, जकी 'फुरसत` पोथी मांय बांचता थकां दुर्गेशजी कैयो कै इणरी प्रेरणा म्हारै सूं ई मिली होसी।
फेर तो म्हे बराबर मिलता रैया। म्हैं 'राजस्थानी काव्य मांय रामकथा` माथै पी-एच.डी. करी अर म्हारो जद राष्‍ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ कानी सूं सम्मान करीज्यो, तद चूरू सूं दुर्गेशजी अर बनावारी खामोश ई बधाई देवण नै आया हा। बीकानेर विश्वविद्यालय बण्यां पछै इणरा पैला कुलपति म्हारै शोध-प्रबंध रो विमोचन करयो अर बांरै मूंढ़ै सूं 'कूपमंडूक` सबद सुणनै राजस्थानी साहित्याकारां हल्लो मचा दियो अर अखबारां मांय ऊलजलूल टिप्पण्यां आपरै नांव सूं छपावण लाग्या तो दुर्गेशजी म्हनैं फोन करनै बूझयो के आप उण कार्यक्रम मांय हा, बताओ कांई हुयो? म्हैं कैयो, कीं ई नीं हुयो, सगळी फालतू बातां है, फेर दुर्गेशजी री टीप नीं छपी। अैड़ा खरा मिनख हा दुर्गेशजी। बै पैली घटना री तैकीकात करता अर फेर इज अखबार मांय लिखता। एक पख री बात नै इज वै तूल नीं देंवता। आज अैड़ां लोगां रो घणो तोड़ो है।
म्हैं उणानै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी सूं लघुकथा माथै पुरस्कार मिल्यो तद बधाई दीनी। वां बडो संको दिखायो अर कीं नीं बोल्या। अैड़ो हो मांयलो दुर्गेशजी रै।
दुर्गेशजी इत्‍ती इज उमर लेयनै आया हा। बै रैंवता तो बांरी घणी रचनावां सामीं आंवती। पण म्हनैं घणो गुमेज हुवै जद चूरू रा घणखरा युवा साहित्यकार बांनै 'सरजी!` कैवै। आ कोयी कम गुमेज री बात नीं है। युवा साहित्यकारां रै 'सरजी` नै म्हारी घणी सिरधाजंलि।

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