कीं म्हारी, शब्द-शिल्पी दुर्गेश रै ओळावै

- दुलाराम सहारण, चूरू

बांका-चूकां आंक लिखतां-लिखतां ढो` इस्यो पड़यो कै साहित्यकार बजण लागग्या। बजो भलां-ई पण साहित्यकार तो साहित्यकार हुवै! फगत काळा-कागद करणियै नै साहित्यकार....? खैर अंट-संट कैवणो तो दुनियां री आदत हुवै!
आ` कैवणी नीं चायजै पण कैवूं कांई? दुर्गेश माथै लिखणो जरूरी.....। पण लिखूं के? लिख नीं सकूं। लिख नीं सकै तो क्यां रो साहित्यकार? बस, बात कीं माथै-ई तो ढाळणी पड़ै। तो क्यूं नीं दुनियां माथै-ई..... क्यूं कै दुनियां-ई मोह री जड़ हुवै। मोह बणज्या अर पछै बो मोहवाळो बिचाळै सूं चाल बहीर हुवै तो लारै बंचणियो के लिख सकै?
बस..... इत्‍ती-ई तो कै भगवान उणां री आत्मा नै स्यांती देवै।
पण...... बो मिनख इस्यो कोनी हो कै इत्‍ती-सी बात सूं लारो छूटज्या। बीं माथै तो एकर सरू हुयां पछै नीं थमीजै इत्‍तो लिखीजणो चायजै। क्यूं कै बो मिनख दंद-फंद वाळो कोनी हो। बो साचो अर सरल मिनख हो। खुद सूं बेसी आगलै नै मानण वाळो हो। कठै-ई दिखावो कोनी हो। जका जाणै बै मानै कै दुर्गेश बणणो अबखो काम है। सादगी अर सरलता नै अपणावण खातर काळज्यो चायजै।
दुर्गेश रै मिस विगत री ओळयूं ई अंवेरूं बस....। क्यूं कै ओळयूं रै मिस एकर दुर्गेश हुय सकै कै म्हारै साथै आयज्या! तो ल्यो` फेर.......

पृष्ठभूमि :
म्हारै सूं बडा म्हारा मां-जाया नारायण भाई सा`ब हायर सेकण्डरी करतां-ईं भारतीय वायुसेना रै तकनीकी ट्रेड मांय लागग्या। बखत री मांग ही अर समझ री बात ही। उण बखत बै आपरै छेतर मांय विज्ञान (गणित) सूं टॉपर हा। उण बखत म्हैं छठी-सातवीं मांय पढ़तो। नारायण भाई सा`ब छुट्टी आंवता तद म्हनैं छोटो हुवण रै कारण बहोत लाड मिलतो। म्हारै खातर ल्याइजेड़ी भांत-भांत री चीजां बिचाळै-ई होंवती बालहंस, नंदन, चंपक, बाल भारती जेड़ी चा`वी बाल-पत्रिकावां। बस..... बां नै पढ़तो तो सो-कीं भूल ज्यांवतो।
'नदंन` पत्रिका मांय 'पत्र-मित्र` स्तम्भ हुंवतो। उण स्तम्भ सूं ठिकाणा लेय`र कीं कागद न्हाख्या। घणो हरख हुयो कै कीं कागदां रो उथळो-ई आयो अर म्हारी पत्र-मित्रता रो सिलसिलो सरु हुयो। आ` खुसी री बात म्हैं नारायण भाई सा`ब नै उणां रै पोस्टिंग स्थल मद्रास (हाल नांव चेन्नई) कागद लिख`र बतायी। वां फरमायो कै भायलाचारी करणी सो`री हुवै; निभावणी दो`री। इण खातर उण समान-विचार वाळै साथै-ई पत्र-मित्रता करी जकै साथै ओ सिलसिलो चालतो राख सकै। आ` सीख म्हारै काम आयी अर म्हैं आजलग उण बात माथै पूरो रैवण री कोसिस करूं।
भाई सा`ब जद छुट्टी आया तद सगळा कागद ओळख्या अर हौंसळो बधायो। कीं जरूरी सीख-ई दी। वां ओ ई कैयो कै पत्रिकावां मांय 'निबंध लिखो`, 'चित्र देखो-कहानी लिखो`, 'वर्ग पहेली भरो` आद प्रतियोगिता मांय भाग-ई लिया कर। वां इण सारू कागदां रा पीसा-ई अळगा दिया। बस... म्हारै पांख आयगी।
पाक्षिक 'बालहंस` मांय पाठकीय प्रतिक्रिया रो स्तम्भ हो 'आती-पाती`। म्हारो पैलीपोत नांव उण मांय छप्यो। अंक हो- अगस्त (प्रथम), 1989 ई.। उण पछै बालहंस मांय-ई निबंध प्रतियोगिता जीती। विसै हो, 'मेरा प्रिय जानवर`। म्हैं ऊंट माथै लिख्यो, अंक हो- मार्च (द्वितीय), 1991 ई.। चित्र बनाओ अर रंग भरो प्रतियोगिता जीती। आगै चाल`र राष्‍ट्रदूत साप्ताहिक मांय रंग भरो प्रतियोगिता मांय कैयीबार इनाम मिल्या। वै 'कैमलिन` रा 'वाटर कलर` नारायण भाई सा`ब ई ल्याय`र दिया हा।
म्हनैं आछी ढंग सूं याद है कै म्हारी पैली कहाणी बालहंस मांय-ई 'खुल गई डिबिया` शीर्षक सूं छपी। अंक हो- अप्रेल (प्रथम), 1993 ई.। पैली कविता 'नीड़` शीर्षक सूं बालहंस, जून (प्रथम), 1993 ई. मांय छपी। इंर् रै लगोलग-ई साप्ताहिक 'इतवारी पत्रिका` रै 11 जुलाई, 1993 ई. रै अंक मांय 'जंगल में मंगल` कविता छपी। दैनिक 'अमर उजाला`, बरेली (3 जुलाई, 1993 ई.) मांय कहाणी 'सहायता` छपी तो पग जमीं पर कोनी हा। आं` सगळी रचनावां रो बाकायदा मानेदय आयो। पछै तो चमाचम (मासिक), लखनऊ, बालदर्शन (मासिक), कानपुर, बच्चे (पाक्षिक), मुम्बई, हंसती दुनिया (मासिक), नई दिल्ली आद पत्रिकावां रै हरेक अंक मांय रचनावां आवण लागगी। ओ सिलसिलो चालतो रैयो।
पिताजी-ई म्हारी लग्न देख`र पत्र-पत्रिकावां खरीदण सारू बिना मांग्यां-ई बेसी पीसा देंवता। म्हनैं याद है कै वां तो जद म्हैं गांव भाड़ंग सूं आठवीं पास कर`र दो कोस अळगै राजकीय माध्यमिक विद्यालय, धीरवास बड़ा (तारानगर) आयो तद बालहंस बंधवाय-ई दी ही। एजेण्ट श्री ओमप्रकाशजी शर्मा, धीरवास नै अगाऊ पीसा दे दिया हा। हर पंदरवैं दिन बालहंस म्हारै हाथां मांय हुंवती। उण बखत बालहंस रै एक अंक रा 2 रिपिया लागता।
10वीं पास करयां पछै म्हैं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, तारानगर (चूरू) भरती हुयो। बठै साहित्यकार बंधु श्री राजेन्द्र कुमार वर्मा उदास (सेवारत-एसबीबीजे) मिल्या। पछै देवकरण जोशी दीपक मिल्यो। घनश्यामनाथ कच्छावा, सुजानगढ़ सूं कागद-ब्यौवार हुयो अर कारवों बणतो गयो।
कॉलेज शिक्षा सारू चूरू रै राजकीय लोहिया कॉलेज मांय आयो। राजकीय सार्वजनिक जिला पुस्तकालय, चूरू सूं राजस्थानी भासा री पोथ्यां लेय`र पढ़ी अर असवाड़ै-पसवाड़ै रा लिखारां रा नांव देख`र अणूतो हरख हुयो। श्री किशोर कल्पनाकांत (रतनगढ़), श्री बैजनाथ पंवार (रतननगर), श्री सीताराम महर्षि (रतनगढ़), श्री श्याम महर्षि (श्रीडूंगरगढ़) आद रा नांव चेतै हुया। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर री मासिक पत्रिका 'जागती जोत` सूं रू-ब-रू हुयो। रचनावां राजस्थानी भासा मांय लिखण री आफळ करी।
रचनावां रै मारफत श्री मदन सैनी (बीकानेर) अर श्री भंवरलाल भ्रमर (बीकानेर) सूं कागद-ब्यौवार हुयो। म्हनैं आछी भांत याद है कै म्हारी पैली राजस्थानी कहाणी 'समै बदळग्यो` जागती जोत रै दिसम्बर, 1995 ई. रै अंक मांय छपी तो सैंग सूं पैलां बधाई श्री मदनजी सैनी री आयी। अकादमी रै कॉलेज स्तरीय पुरस्कार मांय भाग लेवण री हिदायत श्री भ्रमरजी ई दी ही, जको आगै चाल`र बरस 1996-97 मांय म्हनैं मिल्यो।
श्री मदनजी सैनी एक कागद मांय लिख्यो कै आप चूरू रा साहित्यकार श्री दुर्गेश अर म्हारै छोटै भाई साहित्यकार श्रीभगवान सैनी सूं मिलो। श्रीभगवान जी.पी.एफ. मांय अर दुर्गेश कलेक्‍ट्रेट मांय नौकरी करै। वां सूं आपनै कीं सीखण नै मिलसी।

दुर्गेश सूं मुलाकात :
म्हैं दुर्गेश अर श्रीभगवान सूं मिलण उणां रै ऑफिस गयो। कलेक्‍ट्रेट मांय कुणसी शाखा मांय दुर्गेश है, ओ` ठा नीं हुवण रै कारण म्हैं पैली श्रीभगवान सूं मिलण री तेवड़ी। जी.पी.एफ. ऑफिस मांय टाइप साथै माथा-फोड़ी करता श्रीभगवानजी सैनी मिलग्या। म्हैं नांव बतायो, लिखण री रुचि बताई अर मदनजी सैनी रो हवालो दियो। वां घणै मान सूं बैठायो। दो-एक कागद सलटाया अर पछै म्हनैं कलेक्‍ट्री रै लारलै पसवाड़ै टिब्बै माथै लगायोड़ै ढाबै लेग्या। चाय रो ऑर्डर दियो। बठै ढाबै रा धणी श्री ताराचंद माळी सूं बंतळ हुयी। थोड़ी देर पछै लंच रो बखत हुयग्यो। श्री कमल शर्मा ई बठै आयग्या। वां बतायो कै वै दुर्गेशजी कानीखर हुय`र आया है; वै एक-दो कागद सलटाय`र अठै-ई आवण रो कैयो है। म्हारै हरख री सींव नीं ही।
कीं बखत पछै दुर्गेशजी ई आग्या। चोळो-पजामो, फीतां री सैण्डिल, जेब मांय छोटो-सो कांगसियो, तीन-च्यार भांत-भांत रा पैन अर बीड़यां रो बंडल-लाइटर। दाढ़ी-मूंछ साफ। कद औसत पण सियो। डील मांय टिकाव कोनी। कदे-ई उठ`र पाणी रो गिलासियो लेय`र एक घूंट भरणी अर फैंक देवणी। कदे-ई कांगसियो काढ़`र बाळ संवारणा तो कदे-ई लगोलग हाथ मांयली बुझती बीड़ी नै (लाइटर नीं काढ़यो) तारांचदजी सूं माचिस मांग`र सिलगाणी अर थोड़ी-सी देर मांय ओजूं दोहरावणी करणी। उण दिन फगत बात परिचै री ई हुयी। श्रीभगवानजी सैनी फरमायो कै आप लंच रै बखत आ जाया करो, म्हे सगळा अठै-ई मिलस्यां।
उण दिन पछै म्हैं लगोलग ताराचंद माळी रै ढाबै माथै जावण लागग्यो। म्हनैं याद है कै बठै-ई 14 फरवरी, 1996 ई. नै दो मिनखां सूं पैली-पोत भेंटां हुयी। बै हा- श्री गुरुदास भारती (चूरू) अर श्री ओम मिश्रा (श्रीडूंगरगढ़)। ओम मिश्रा चावा-ठावा फोटोग्राफर-लिखारा अर गुरुदास भारती ई लिखारा। श्री गुरुदास भारती उण दिनां केन्द्रीय विद्यालय, चूरू री मास्टरी सूं मुगत करीज्या हा अर निजू आफळ मांय हा। आगै चाल`र जद दैनिक भास्कर, सीकर संस्करण सरू हुयो तद वै चूरू रा ब्यूरो प्रमुख बणाइज्या। (22 दिसम्बर, 1996 ई. नै म्हैं, दुर्गेश अर गुरुदास भारती दैनिक भास्कर रै सीकर संस्करण लोकार्पण समारोह मांय गया हा)। ओम मिश्रा अर भारती सूं हुयी वां मुलाकात आजलग जारी है।
म्हनैं याद है कै उण मुलाकात रै कीं दिनां पछै डॉ. अमरसिंह राठौड़ (सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, जयपुर रा अधिकारी) एक साहित्यिक कार्यक्रम मांय बिसाऊ (झुंझूनूं) पधारया। तारीख ही- 24 मार्च, 1996 ई.। दुर्गेश, श्रीभगवान, गुरुदास, कमल रै साथै म्हैं-ई बिसाऊ गयो। बठै पैलीपोत डॉ. उदयवीर शर्मा, अमोलकचंद जांगिड़, डॉ. किरण नाहटा सूं भेंटां हुयी। सांतरो जळसो हुयो। बहोत-कीं सीखण नै मिल्यो।
31 मार्च, 1996 ई. नै श्रीडूंगरगढ़ मांय श्याम महर्षि युवा कहाणीकारां माथै कोयी कार्यक्रम करायो। श्री मदन सैनी म्हारो नांव प्रस्तावित कर दियो हो स्यात्! म्हनैं ई बुलाइज्यो। म्हे सगळा श्रीडूंगरगढ़ पूग्या। म्हारै साथै कहाणीकार रै रूप मांय गुरुदास भारती ई हा। कहाण्यां रो वाचन अर पछै विद्वानां री समीक्षा। पैली दफै बडेरां कानी सूं म्हारी कहाणी री कूंत हुयी। घणो सीख्यो अर बो आजलग काम आवै। उण दिन पैली पोत श्री मदन सैनी, श्याम महर्षि, मालचंद तिवाड़ी, शंकरसिंह राजपुरोहित, नीरज दइया, रवि पुरोहित, रतन राहगीर, महावीर पंवार आद घणां-ई साहित्यकारां रा दरसण करघ।
बीकानेर मांय राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर अर मिंमझर संस्थान, बीकानेर री भेळप सूं 6-6 सितम्बर, 1998 ई. नै 'राजस्थानी युवा रचनाकार समारोह` हुयो। उण मांय म्हैं, सामौरजी, दुर्गेशजी अर श्रीभगवान सैनी गया। बठै पैलीपोत श्री भरत ओळा, सत्यनारायण सोनी, शांति भारद्वाज राकेश, चंद्रप्रकाश देवळ, दीनदयाल शर्मा आद सूं भेंटां हुयी। घणा-ई नुंवां लिखारां सूं मुलाकात हुयी अर अब्दुल वहीद कमल रै सांतरै संयोजन सूं कीं सीख्यो।
ओ सिलसिलो बधतो गयो। लिखतो गयो अर छपतो गयो। पण एक अफसोस हुयो कै दुर्गेशजी दर-ई कोनी लिखै। न पढ़ै। बस लिखो..... बस लिखो कैवै। लिख्योड़ो लेग्यो तो बेमन सूं पढ़यो अर 'ठीक है` रै सिवाय कीं कोनी....। हां श्रीभगवान सैनी जरूर आपरी हाथपाई लगांवता। बै काम-ई आंवती। दुर्गेश चुप..... कारण.......? कारण निजू समस्यां सूं ग्रसित हुयां पछै री धारेड़ी चुप्पी, साथ्यां बतायी। कीं हुवो भलां-ई मुलाकात तो हुंवती.... आ के कमती बात ही?
इनै श्री बैजनाथजी पंवार सूं ई भेंटां हुयगी ही। श्री भंवरसिंहजी सामौर तो कॉलेज मांय हा ई। 1फरवरी, 1996 ई. नै नगरश्री, चूरू मांय श्री करणीदान बारहठ, फेफाना (हनुमानगढ़) पधारया। बां सूं म्हारो कागद-ब्यौवार हो। बां पैली-ई सूचना दे दीनी ही अर म्हनैं मिलण सारू निरदेस-ई। उण दिन पैली पोत श्री बारहठ अर श्री सुबोधकुमारजी अग्रवाळ सूं भेंटां हुयी। गोविंदजी अग्रवाळ तो उण दिन नीं मिल्या। हां, याद है कै बां सूं पछै एक दिन भेंट हुयी अर कागद बतावै कै बो दिन हो, 2 फरवरी, 1996 ई. रो। आं विद्वानां रा निरदेस बखत-बखत मिलता रैंवता, जिकां रो जिकर कदै ओजूं। इबै तो फगत दुर्गेश अर म्हारो....।
चूरू आवण सूं पैलां म्हारी घणी बाल-रचनावां न्यारी-न्यारी पत्र-पत्रिकावां मांय छपगी ही। म्हैं बा` फाइल लेय`र दुर्गेशजी कनै आयो। बां देखी अर पैली दफै पीठ थपथपायी। बोल्या, 'इणां सूं तो 2-3 बाल पोथ्यां बण सकै। छपावो।` पछै हाथूं-हाथ बोल्या, 'के फायदो? रैवणदयो।`
बस आ ऊहापोह री थिति म्हैं छेकड़ ताणी उणां मांय देखी। कारण के हो? ठा नीं।
बिचाळै कीं निष्क्रियता आयगी ही। म्हैं छात्रसंघ रै चुनावां मांय फंसग्यो हो। दुर्गेश अर साथ्यां सूं भेंटां कमती हुवणी-ई ही। पण जद कॉलेज मांय हुवण वाळा सगळा चुनाव (कक्षा प्रतिनिधि, महासचिव अर अध्यक्ष) जीत लिया तो हूंस मिटगी अर साहित्य ओजूं चोखो लागण लाग्यो। दुर्गेशजी रै लारै पड़`र एक हिन्दी व्यंग्य पोथी 'गले वोटो की जेवड़ी` त्यार करवायी। उण बखत राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर रा अध्यक्ष श्री वेदव्यासजी हा। पण पोथी छपण रो जोग कोनी बैठयो। वेदव्यासजी सूं म्हैं खुद फोन माथै बात करी, वां फेरूं रो भरोसो दिरायो। पण हाल...... ? हाल निष्क्रियता टूटणी जरूरी ही।
ओजूं दुर्गेशजी रै लारै पड़`र बां व्यंग्यां रो राजस्थानी अनुवाद करवायो अर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर मांय श्री पृथ्वीराजजी रतनू कनै भिजवायी। पांडुलिपि प्रकासण सैयोग मंजूर हुयो अर पोथी 'ऊजळा दागी` छपी। दुर्गेशजी री साथै छपावण री अड़ी अर चूरू रा विद्वान श्री कमलसिंहजी कोठारी री दियोड़ी हूंस रै पांण म्हारी कहाणी पोथी 'पीड़` छपी। आ` 2004-05 ई. री बात है।
हरेक बैठक मांय बंतळ हुंवती कै दुर्गेशजी जबरा आयोजन करवाया। मन माठो हुंवतो कै आपां पैली चूरू क्यूं कोनी आया! इब दुर्गेशजी लूंठा आयोजन क्यूं कोनी करावै? छोटी-छोटी गोष्ठियां...... बस।
दुर्गेशजी सूं कुचरणी करता। पण बात बणी कोनी। भाई गुरुदास भारती, कमल शर्मा, श्रीभगवान सैनी सूं बंतळ करी अर आयोजन रो जोड़ बिठाण री आफळ....! श्री भंवरसिंहजी सामौर राजस्थानी, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर री कार्यसमिति मांय हा, बात करी। सामौर सा`ब रो बड़प्पन कै बां झट देणी हां भरली। अकादमी अध्यक्ष डॉ. देव कोठारी चूरू नै जिला साहित्यकार सम्मेलन दियो। दस हजार रो बजट अर एक दिन रो कार्यक्रम, जिण मांय जिलै रा साहित्यकार भेळा हुवणां अर साहित्यिक चर्चा हुवणी।
जी कोनी मान्यो। संभागीय हुंवतो तो सियोता बणती। कांई करीजै? सगळां साथ्यां हिम्मत तेवड़ी अर जन-सैयोग सूं कार्यक्रम दो दिवसीय अर संभाग स्तरीय बणावण री तै करीजी। मरुधरा लोक कला संस्थान, चूरू अर अकादमी री भेळप मांय दुर्गेश रै संयोजकत्व मांय 10-11 दिसम्बर, 2005 ई. नै चूरू मांय 'राजस्थानी साहित्यकार समारोह` तेवड़ीज्यो। आसेरी गेस्ट हाउस, चूरू मांय हुयो ओ` कार्योम लूंठो हुयो अर आखै राजस्थान, खासकर बीकानेर संभाग सूं घणां साहित्यकार पधारघ। श्रीनंद भारद्वाज (जयपुर), हनुमान दीक्षित, भरत ओळा, शिवराज भारतीय (नोहर), मालचंद तिवाड़ी, ओम मिश्रा, राजेन्द्र स्वर्णकार (बीकानेर), बैजनाथ पंवार, भंवरसिंह सामौर, हरिराम मीणा (चूरू) श्याम महर्षि (श्रीडूंगरगढ़), डॉ. नरपतसिंह सोढ़ा (झुंझुनू), पूर्ण शर्मा पूरण (रामगढ़-हनुमानगढ़), मनोहरसिंह राठौड, नागराज शर्मा, शीतांशु भारद्वाज (पिलानी), ओम पुरोहित कागद, दीनदयाल शर्मा (हनुमानगढ़), सीताराम महर्षि (रतनगढ़), शारदा कृष्ण (सीकर), डॉ. मंगत बादळ (रायसिंहनगर-श्रीगंगानगर), डॉ. चेतन स्वामी (फतेहपुर-शेखावाटी), मनोज स्वामी (सूरतगढ़), बजरंगलाल जेठू (लाडनूं-नागौर), डॉ. रामकुमार घोटड़ (सादुलपुर) समेत घणां ई नांव समारोह री भेळप मांय गिणावण जोग है। स्मारिका 'मरुधरा` ई छपी। इण समारोह रै मिस-ई दुर्गेशजी रा हेताळू हनुमान आदित्य सूं भेंट हुयी, वां रो सैयोग समारोह मांय सरावण जोग रैयो।
ओ` समारोह सक्रियता रो पांवडो बण्यो। इण पछै हरेक 10-15वें दिन कोयी-न-कोयी कार्यक्रम हुंवतो रैंवतो। नुंवै प्रकासण कानी ध्यान गयो तद प्रकासणां री लगांटेर लागगी। कार्यक्रम रो कार्ड लेय`र जांवता जद सामलो पैली ई बूझतो, 'क्यां रो विमोचन है?`।
श्रीदुर्गेशजी साथै बंतळ मांय एक दिन 'राजस्थानी जातरा संस्मरण रो अभाव` चर्चा रो विसै हो। वां झट-सी ओ` काम 'बाळू रेत सूं गोमुख तांई` पांण सरू करयो। आ` कड़ी दैनिक युगपक्ष मांय लगोलग छपी। दुर्गेशजी किणी घटना माथै बेगा आंदोलित हुंवता अर उणरी प्रतिक्रिया कागदां माथै उतरती। वै कैवण सूं बेसी लिख`र अभिव्यक्ति देंवता। दिन मांय बात हुंवती उण री प्रतिक्रिया वै म्हारै घर रै ठिकाणै माथै डाक सूं कागद भेज`र देंवता। घणां कागद आज फाइलबद्ध है। सामयिक घटनावां माथै तो वै झट लिखता अर दैनिक नवज्योति रो 'जल-तरंग` स्तम्भ उणां नै छापतो। अै व्यंग्य हुंवता, जका पांडुलिपि 'मुझ से बड़ा न कोय` मांय संग्रहित है। वां घणी-ई लघुकथावां लिखी। म्हैं-ई प्रेरित हुय`र अेक पोथी नैड़ी लघुकथावां लिखी। म्हारै कनै जातरा संस्मरण तो कोनी हा, पण नान्हीं-नान्हीं घटनावां नै सलीकै सूं सजाय`र 'संस्मरण` एक पोथी नैड़ा लिख मेल्या। ओ योगदान दुर्गेश नै है।
आं कैंवतां घणो हरख हुवै कै प्रयास संस्थान, चूरू री पैली साहित्यिक गोष्ठी 'पोथी चर्चा` (डौळ उडीकती माटी-पूर्ण शर्मा पूरण) रो 30 नवम्बर, 2004 ई. नै संयोजन दुर्गेशजी ई करयो।
दिसम्बर-2005 रो 'राजस्थानी साहित्यिक समारोह` जठै सक्रियता लेय`र आयो बठै-ई कीं मानवीय दुर्बलतावां ई लेय`र आयो। दुर्गेशजी अर साथ्यां सूं बेबाक बात-ई हुयी पण हुवणी ही जकी हुयगी। एक भलो, सीधो-साधो सज्जन, साफ दिल मिनख जाळ सूं निकळ कोनी सक्यो। दोख देवां तो ई किनै....?
वो दिन याद है जद म्हारा वकील साथी भाई राजेन्द्र राजपुरोहित फोन कर`र बात दबावंतां थकां बूझण रै मिस सूचना दीवी कै दुर्गेशजी रो एक्सीडेण्ट (पैड़यां सूं तिसळग्या) हुयग्यो। के बात हुयी? म्हैं हाथो-हाथ भाई गुरुदास भारती सूं फोन मिलायो तो वां निरासा मांय कैयो, 'रैया कोनी। भरतिया अस्पताल मोर्चरी मांय .....।` विस्वास-ई कोनी हुयो। गुरुदासजी जेड़ै पुख्ता मिनख री बात पछै ई मन नीं डटयो अर अवकाश सैनी रा नम्बर मत्‍तो-मत्‍त डायल हुग्या।
अस्पताळ पूग्यो.......। और...... सो-कीं सैं-गै। जठै याद आयो, बठै सूचना दीनी.....।
शवयात्रा सूं पैली छेकड़ला दरसण अर नश्वर डील चिता नै समर्पित।
तारजी माळी रै ढाबै सूं सरू हुयी म्हारी जाणकारी री जातरा 18 नवम्बर, 2007 ई. नै खतम हुयगी।
बातां घणी है, कदे ओरूं लिखस्यां।

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