ऊंची सोच वाला पुरुष


- एडवोकेट धन्नाराम सैनी, चूरू

दुर्गादत्‍त दुर्गेश का जन्म एक गरीब-मजदूर परिवार में हुआ। चार बहिनों व दो भाईयों के परिवार में स्व. मेघाराम की चतुर्थ संतान दुर्गादत्‍त रहे हैं। परिवार ने शिक्षा को छूआ तक नहीं था। सभी अनपढ़ थे तथा केवल मात्र दुर्गेश ने ही शिक्षा के द्वार पर दस्तक दी थी।
शुरू से ही धीर, गंभीर व एकाकी प्रकृति के व्यक्ति मेहनत व लगन के आधार विपरीत परिस्थितियों में भी मैट्रिक परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास की। बाद में बी.ए. की और कलेक्‍ट्रेट, चूरू में उनको अपनी मेहनत के बल पर कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति मिली।
लेखन मे रुचि उनकी हमेशा से रही थी। नौकरी के साथ-साथ लेखन कार्य करते थे। परिवार-रिश्तेदारी के कार्यक्रमों, आयोजनों से बेखबर रहकर पूरा समय लेखन में ही देते थे। पारिवारिक आयोजनों के लिए समय निकालने में उनका कोई उत्साह नहीं था। वे कभी-कभी बादलों में बिजली की चमक की तरह उपस्थिति दर्ज करवा जाते थे फिर भी उनकी उपस्थिति से परिवारजन अति उल्लास से हर्षित हो जाते थे। वे बहुत तोल-तोलकर बोलते थे। वे बहुत ही कम बोलते थे। परिवारजन भी उनकी लेखन की गंभीरता को गहराई को देखते हुए उनको कभी विचलित करने का प्रयास नहीं किया। उनकी प्रेरणा व सहयोग से रिश्तेदारों ने अपने कदम बढ़ाये लेकिन उन्होंने कभी अपने परिवार की और मुड़कर नहीं देखा। वो सामान्य पुरुष से बहुत अलग थे। उनकी सोच बहुत ही ऊंचाईयां छूती थी। और वे असमय ही चले गये।

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